
आजाद का मानना था कि अंग्रेजों के जमाने में भारत की पढ़ाई में संस्कृति को अच्छे ढंग से शामिल नहीं किया गया था इसलिए 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शिक्षा मंत्री बनने पर उन्होंने पढ़ाई लिखाई और संस्कृति के मेलजोल पर विशेष ध्यान दिया। मौलाना आजाद की अगुवाई में 1950 के शुरुआती दशक में संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी का गठन हुआ। इससे पहले वह 1950 में ही भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद बना चुके थे। वह भारत के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन थे, जिसका काम केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर शिक्षा का प्रसार था। उन्होंने सख्ती से वकालत की कि भारत में धर्म, जाति और लिंग से ऊपर उठ कर 14 साल तक सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जानी चाहिए। वह महिला शिक्षा के खास हिमायती थे। उनकी पहल पर भारत में 1956 में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की स्थापना हुई। मौलाना आजाद को एक दूरदर्शी विद्वान माना जाता है, जिन्होंने 1950 के दशक में ही सूचना और तकनीक के क्षेत्र में शिक्षा पर ध्यान देना शुरू कर दिया था। शिक्षा मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल में ही भारत में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का गठन किया गया। कक्षा ग्यारहवीं के छात्र त्रिलोकी और छात्रा खुशी ने भी भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री के जीवन से परिचय करवाते हुए उन के द्वारा भारतीय संस्कृति और शिक्षा की सुदृढ़ बनाने के प्रयासों की सराहना की। इस अवसर पर प्राचार्या नीलम कौशिक, रविन्द्र कुमार मनचन्दा, रेणु शर्मा, विनोद बैंसला, सुनील नागर, बिजेंद्र सिंह, चंदन बिंदु सहित विद्यालय के सभी प्राध्यापक और बच्चों उपस्थित रहे।